
CM पुष्कर के Zero Tolerance Policy को आगे बढ़ाते हुए Secretary दीपेन्द्र चौधरी ने पकड़ा फर्जीवाड़ा:जारी किए 10 कड़क फरमान:विवि के कारनामों-कांडों को पकड़ न पाने-खामोश रहने से System पर उठ रही अंगुली
Chetan Gurung

गोविन्द वल्लभ पन्त कृषि और प्रौद्योगिकी विवि (पंतनगर) में चल रहे फर्जीवाड़े और इसके चलते उत्तराखंड सरकार के खजाने को लगातार हर साल करोड़ों का चूना लगाए जाने का विस्फोटक खुलासा सरकार की ही जांच में हुआ.ICAR के Projects के बहाने विवि में घुसे Non Teaching Staff भी न सिर्फ 65 सालों तक की नौकरी का लुत्फ़ लेते रहे बल्कि तमाम लोग पेंशन सुविधा और ग्रेच्युटी भी ले गए.कृषि सचिव दीपेन्द्र चौधरी ने शिकायत पर जांच कराई तो एक के बाद एक तमाम हैरतनाक खुलासों ने विवि के कारनामों और कांडों को बेपर्दा कर डाला.www.chetangurungg.com से दीपेन्द्र ने पूछने पर सिर्फ इतना कहा कि सरकार अभी आगे की जांच भी कराएगी.माना जा रहा है कि अब इस मामले में Special Audit भी होगा.Vigilance को जांच सौंपने की तैयारी है.इसके बाद ही जिम्मेदारी और दंडात्मक कार्रवाई तय होगी.CM पुष्कर सिंह धामी ने भ्रष्टाचार के किसी भी छोटे से ले के बड़े मामलों तक में कोई कोताही न करने की हिदायत दी है.




भ्रष्टाचार और मनमौजीपन की उधम सिंह नगर के इस विवि ने कमाल की मिसाल कायम कर दी है.www.chetangurungg.com के पास विवि के कारनामों और भीषण अनियमितता को जाहिर करने वाली शासन की पूरी रिपोर्ट है.इसमें सचिव दीपेन्द्र की बेहद कठोर और कड़क टिप्पणी विवि प्रशासन को हिलाने के लिए काफी है.उन्होंने 9 बिन्दुओं में आदेश भी जारी कर आइन्दा सरकार के किसी भी आदेश-सहमति के बगैर ऐसा कदम न उठाने की हिदायत दी है, जिसमें सरकार का पैसा किसी भी सूरत में लगा हो.उत्तराखंड सरकार हर साल 200 करोड़ रूपये से अधिक इस विवि को सिर्फ तनख्वाह-भत्तों के लिए देती है.
ICAR के प्रोजेक्ट्स में शामिल किसी भी कार्मिक को न तो दूसरे प्रोजेक्ट्स में भेजा जा सकता है न ही प्रोजेक्ट ख़त्म होने के बाद उसको रखा जा सकता है.आसान शब्दों में कहा जाए तो `Project ख़त्म-सेवा ख़त्म’.इन प्रोजेक्ट्स में ICAR 75 फ़ीसदी और उत्तराखंड सरकार 25 फ़ीसदी खर्च उठाता है.प्रोजेक्ट्स में काम कर रहे लोगों (सीनियर रिसर्च एसोसियेट-जूनियर रिसर्च एसोसियेट-सीनियर टेक्नीकल असिस्टेंट-टेक्नीकल असिस्टेंट और अन्य) को प्रोजेक्ट्स तक ही रखने का प्रावधान है.विवि ने ऐसा न कर के तमाम खेल एक साथ किए.कईयों को प्रोजेक्ट ख़त्म होने के बावजूद 65 साल की उम्र तक बनाए रखा.उनको पेंशन भी दी.ऐसा कैसे किया, इसकी जानकारी भी सरकार ले रही है.



इस प्रजाति के कार्मिकों की तादाद 54 हैं.अभी भी 38 लोग ऐसे हैं जो 60 से 65 साल की उम्र के बीच हैं.वे नौकरी कर रहे हैं.10 लोगों ने 65 साल की उम्र तक नौकरी कर पेंशन का सुख लेना शुरू कर दिया है.कुछ कार्मिकों के मामले में 5-6 साल पहले सुर्खीबाज अपर सचिव (IAS) रामबिलास यादव के कार्यकाल के दौरान One Time Settlement का खेल भी हुआ था.तब जो हुआ सो हुआ लेकिन उस OTS से इतर भी अन्य कार्मिक खूब मौज आज तक ले रहे थे.इस मामले में High Court तक बात पहुँच चुकी है.6 कार्मिकों ने HC की शरण ली है.शासन ने इस बार कोई ढील और लापरवाही न बरतते हुए सख्त और ठोस कार्यवाही के लिए मजबूत Homework किया है.
शासन ने इस बार विवि के कुप्रबंधन और सरकारी खजाने को मनमौजी अंदाज में चूना लगाने के मामले में एक साथ कार्मिक-न्याय-वित्त महकमे की भी राय ले के कार्रवाई की है.माना जा रहा है कि सरकार के ताजा और कठोर रुख से विवि में खलबली मची हुई है.सूत्रों के मुताबिक विवि के अंतरिम परिषद की बैठक आनन-फानन में बुला के हालात से निबटने और सरकार के डंडे से बचने के रास्ते-उपायों को खोजा जा रहा है.मोटा अनुमान है कि 37 करोड़ रूपये विवि के फर्जी कार्मिकों (ये सभी Projects वाले थे-हैं) ने सरकारी खजाने से निकलवा लिए.अभी Audit रिपोर्ट आ ही रही है.सरकारी खजाने को कितना नुक्सान हुआ है, उसका हिसाब लगाया जा रहा है.
ये हिसाब सिर्फ वेतन से जुड़ा हुआ है.उनके पेंशन-सत्रांत लाभ (ये भी दिया गया-है न कमाल? इसका मतलब यूं समझे-आप अगर अगस्त में रिटायर हो रहे तो मार्च End में होंगे)-ग्रेच्युटी का तो अभी हिसाब लगाना है.तब शायद ये 60-70 करोड़ रूपये से अधिक के आंकड़े को पार कर जाए.ये ताज्जुब से कम नहीं है कि सरकार में आज से पहले किसी ने इतने बड़े घोटाले (सही शब्द) की तरफ तवज्जो नहीं दी या फिर उसको भनक ही नहीं लगी.ये जो लाभ और सुविधाएं हैं,सिर्फ प्रोफ़ेसर-एसोसियेट प्रोफ़ेसर-असिस्टेंट प्रोफ़ेसर या समकक्ष को दिए जा सकते थे.विवि प्रशासन से मिलीभगत-साजिश कर इतना बड़ा घोटाला अंजाम दे डाला गया.
सवाल तो विवि का Audit करने वाली टीम और Finance Controller (FC) पर भी उठाया जाना चाहिए.उनको भला ये सब कैसे पता नहीं चला?Registrar-VCs इस खेल का पता नहीं कर पाए या फिर उनकी मौन सहमति घोटाले-वित्तीय अनियमितता भी थी? शासन सूत्रों के मुताबिक इतना बड़ा काण्ड और घोटाला सामने आने के बाद इस मामले पर Vigilance जांच और Special Audit बिठाए जाने की पूरी सम्भावना बन गई है.इसकी तैयारी शुरू हो गई है.
CM पुष्कर सिंह धामी इस मामले में किसी भी तरह की हीला हवाली करने के हक़ में नहीं बताए जा रहे हैं.वह हर दोषी-भ्रष्ट को कानूनी कार्रवाई की जद में लाने और दण्डित करने के लिए अफसरों को हिदायत दे चुके हैं.इतना बड़ा काण्ड-कारनामा सामने आने के बाद दुनिया की तीसरे सबसे बड़े Farm वाले और पूर्व में बेहद नामचीन रहे विवि पर सरकार का शिकंजा बजट देने और प्रबंधन में कसने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
Autonomous विवि होने के बावजूद सरकारी खजाने से पैसा जाने के चलते भी वित्तीय मामलों में बिना सरकार की पूर्व सहमति के कोई भी फैसला लेने पर प्रतिबन्ध है.सूत्रों के अनुसार विवि सरकार को कुछ भी तवज्जो न दे के खुद ही सारे फैसले ले रही है.ऐसे फैसले भी, जिसको वह सरकार की मंजूरी के बिना नहीं ले सकती है.ICAR के प्रोजेक्ट्स ख़त्म होने के बाद जिन कार्मिकों को हट जाना चाहिए था, उनको न हटा के विवि में अन्य प्रोजेक्ट या फिर कामों में खपा दिया गया.
उस सूरत में ICAR से एक रुपल्ली भी विवि को नहीं मिला.सारा पैसा राज्य सरकार के खजाने से वेतन-भत्ते-छुट्टियों का पैसा-ग्रेच्युटी-पेंशन के तौर पर निकल रहा.प्रोजेक्ट ख़त्म होने के बाद भी वे इतनी नौकरी कर गए कि कथित रूप से पेंशन के ही हकदार बन गए.भले सेवा काल पर्याप्त हो तब भी Projects के लोगों को पेंशन और अन्य लाभ नियिमित कार्मिकों की तरह नहीं दिए जा सकते हैं.अब प्रोजेक्ट्स के जरिये विवि में घुसे और जमे बैठे कार्मिकों को भी जल्द से जल्द हटाने या बर्खास्त करने पर शासन में कसरत चल रही.
उनके बदले सरकार चाहती है कि नियमानुसार पक्की-स्थाई नियुक्ति की जाए.इससे घोटालेबाजों को धक्का लगेगा.सुशिक्षित युवाओं को स्थाई नौकरी मिलेगी.कृषि सचिव दीपेन्द्र ने कहा कि अभी ये आंकलन किया जा रहा है कि सरकारी खजाने को विवि के फैसलों ने कितना नुक्सान पहुँचाया.सरकार अपना पाई-पाई वसूल करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.