
कैलाश गहतौड़ी ने स्पीकर को सौंपा इस्तीफा:पुष्कर भी रणभूमि रवाना
Chetan Gurung
चंपावत की जंग में वहाँ के लोगों के सामने दो विकल्प साफ-साफ हैं। CM पुष्कर सिंह धामी को चुनें या फिर काँग्रेस का सामान्य MLA! वहाँ के MLA कैलाश गहतौड़ी ने वादे के मुताबिक आज सुबह स्पीकर ऋतु खंडूड़ी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। पुष्कर भी हाथों हाथ नई रण भूमि के लिए कुछ देर बाद रवाना हो गए।
उत्तराखंड में आज तक सिर्फ 3 मौके ऐसे आए हैं जब CM को उपचुनाव में जाना पड़ा। एक बार ND तिवारी रामनगर से लड़े। पर्चा भरने के बाद फिर गए नहीं। जीतने के बाद लोगों का आभार प्रकट करने गए। तब (साल 2002) काँग्रेस की सरकार बनी थी लेकिन NDT ने सभी दावेदारों को धूल चटाते-निराश-हताश करते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। वह विधायक भी नहीं थे तब।
दूसरा मौका भी मिलता-जुलता रहा था। BJP ने साल 2007 में सरकार बनाई थी। इस मिली जुली सरकार में BC खंडूरी जब CM बनाए गए तो वह लोकसभा सदस्य थे। वह धूमाकोट से लड़ के विधायक बने थे। काँग्रेस के लेफ्टिनेंट जनरल से रिटायर हुए तेजपाल सिंह रावत ने विधायकी और पार्टी छोड़ के उनके लिए जगह बनाई थी। वह खुद बीजेपी में आ गए थे। 2012 में काँग्रेस सरकार बनी तो विजय बहुगुणा MP रहते हुए CM बनाए गए। वह सितारगंज से Bye Election लड़ के बाद में विधायक बने।
ये मौका इस बार पुष्कर को मिला है। खास पहलू ये है कि किसी भी CM को उपचुनाव में फतह हासिल करने में कोई तकलीफ कभी नहीं हुई। मोदी-राष्ट्रवाद-हिन्दुत्व-ऊर्जावान-युवा CM और धूल-धूसरित-हताश-निराश काँग्रेस के दौर में पुष्कर को चंपावत में किसी किस्म की टक्कर भी मिल जाती है, तो वही बड़ी बात है। टक्कर का मतलब भारी विजय अंतर से रोकना है। नतीजे को ले के तो खुद काँग्रेस के लोग भी मुतमईन हैं कि उनके लिए कितनी उम्मीद चंपावत में है।
बेशक करण माहरा-हरीश रावत-यशपाल आर्य-रंजीत रावत वहाँ डेरा डाल सकते हैं। जान लगा सकते हैं। नतीजा उलट देंगे, इस पर शायद ही किसी को यकीन होगा। इस बार खटीमा जैसी दगाबाजी का साथ भी काँग्रेस को BJP के चंद सिपहसालारों से नहीं मिलेगा। चंपावत के लोगों को काफी चतुर और सियासी तौर पर स्मार्ट माना जाता है। वे जानते हैं कि उनके सामने एक तरफ तैयार मुख्यमंत्री है। दूसरी तरफ जो भी चेहरा काँग्रेस खड़ा करेगी, वह सिर्फ MLA बन सकेगा। ये उनके विवेक की परख भी होगी कि वे CM चुनना पसंद करेंगे या महज MLA!
पुष्कर के लिए चंपावत की सीट कुछ समीकरणों के लिहाज से ठीक है। वहाँ बीजेपी और कैलाश का बढ़िया असर है। खटीमा से लगी सीट होने के कारण खुद पुष्कर की भी पैठ है। मौजूदा विधानसभा सीट खटीमा में जातीय समीकरण BJP को बहुत अधिक माफिक नहीं आते हैं। बेशक दो चुनाव जीतने में पुष्कर कामयाब रहे हों। चंपावत में ऐसा नहीं है कि हालात ही मुफीद न हो। वह चाहें तो भविष्य के नजरिए से चंपावत को स्थाई सीट बना सकते हैं।
मुख्यमंत्री और बीजेपी के सामने तमाम विकल्प उपचुनाव लड़ने के लिए थे, लेकिन इन सभी कोणों और हालात का गंभीरता से जायजा लेने के बाद देहरादून की कैंट सीट पर चंपावत को तवज्जो दी गई। PM नरेंद्र मोदी-गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने सीट के फैसले को OK कर दिया। कैंट सीट में भी विजय तय कही जा सकती थी। यहाँ बहुत मेहनत भी करने की जरूरत नहीं थी। पुष्कर और BJP ने सिर्फ भविष्य के लक्ष्य भी तय करते हुए चंपावत की धरती को जंग भूमि चुनना पसंद किया।
कैलाश ने सुबह जब स्पीकर के घर जा के इस्तीफा सौंपा तो BJP के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, मंत्री चन्दन रामदास, मेयर सुनील उनियाल गामा, कैलाश पंत और बलजीत सिंह सोनी भी मौजूद थे। इस्तीफे के कुछ देर बाद ही मुख्यमंत्री ने चंपावत की उड़ान भरी। खटीमा में मिले घाव के बाद अब वह लाल पैसे के बराबर भी ढिलाई बरतने और आँख मूँद के किसी पर यकीन करने को शायद ही राजी हो।