
गैर IAS सचिव तक बने लेकिन IAS अफसरों को IPS बर्दाश्त नहीं:CM पुष्कर जितनी जल्दी फुर्सत पाएंगे, उतना फायदा होगा
The Corner View
Chetan Gurung
सवा दो दशक की उम्र देख चुके सबसे नए हिमालयी राज्य उत्तराखंड में Deputation पर आए अधिकाँश नौकरशाहों ने सरकार के लिए संकट-सिरदर्द पैदा किया.बड़े घोटालों से उनका नाता रहा.विवादों से गलबहियां रहीं.या फिर अपने उल-जुलूल किस्म के फैसलों से सरकार की लुटिया डुबोने की कोशिशों में कसर नहीं छोड़ी.वे कई मामलों में CM-सरकार के लिए मुसीबत साबित हुए.तमाम ऐसे नौकरशाहों को सरकार ने या तो हाथ जोड़ के या फिर डंडा मार के बाद में वक्त से पहले विदा किया.सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि इनमें सिर्फ IAS ही नहीं रहे.गैर IAS अफसरों की भी खासी तादाद रही.ऐसे भी रहे जिनका All India Civil Service से कोई नाता नहीं रहा.फिर भी सियासी जुगाड़-दांवपेंचों से वे देवभूमि में न सिर्फ आने में सफल रहे बल्कि IAS की Cadre Post भी कब्जाने में सफल रहे.इस बात पर हैरानी हो सकती है कि अपने ही Cadre के IPS अफसरों के साथ किसी भी सरकार कर रुख Deputationist की तुलना में बेहद रुखा रहा.

राज्य के जन्म लेने के पहले से ही मैंने यहाँ के नौकरशाहों को करीब से देखा हुआ था.जब वे लखनऊ सचिवालय में बैठा करते थे या फिर गढ़वाल-देहरादून में वे अलग-अलग ओहदों पर रहा करते थे.डॉ रघुनंदन सिंह टोलिया-सुरजीत किशोर दास-नृप सिंह नपलच्याल-सुभाष कुमार-PC शर्मा (सभी IAS और शर्मा छोड़ तीनों Chief Secretary बने) इनमें शामिल थे.IPS अफसरों में कविराज नेगी-अभिनव कुमार ही ऐसे थे, जिनको राज्य गठन के पहले से जानता था. जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो अधिकांश ऐसे IAS अफसरों ने नए-पहाड़ी और छोटे राज्य को UP पर तरजीह दे के आना पसंद किया, जिनकी प्रतिष्ठा और छवि बहुत अच्छी थी.उनकी काबिलियत को ले के कोई सवाल नहीं उठते थे.
जब वे उत्तराखंड Cadre में आए तो यहाँ के लोगों ने उनका बेहद अपनत्व के साथ एक किस्म से स्वागत किया.राज्य गठन के शुरुआती दौर में अचानक कामकाज बढ़ा हुआ दिखा.DM-सचिव स्तर के अफसरों की कमी दिखने लगी.ND तिवारी ने साल-2002 में CM के तौर पर कुर्सी संभाली तो अलग-अलग राज्यों से नौकरशाह Deputation पर आने लगे.तिवारी खुले दिल के थे.बड़ी सोच रखते थे.प्रशासन और शासन का व्यापक अनुभव रखते थे.वह जानते थे कि बिना नौकरशाहों की पर्याप्त संख्या के काम नहीं हो सकता है.उन्होंने हर किसी ऐसे नौकरशाह के लिए राज्य के दरवाजे खोल दिए, जो यहाँ Deputation पर आना चाह रहे थे.इन नौकरशाहों ने आते ही खेल कर डाला.ये आज तक साबित नहीं हो पाया कि NDT के दौरान जो Siidcul घोटाला हुआ, उसमें कौन-कौन लोग दोषी थे, लेकिन सच ये है कि उसमें 4 IAS अफसरों के नाम सामने आए थे.चारों Deputationist थे.नाम उछलते ही सरकार ने सभी को पहले ही कार्यमुक्त कर दिया.अब एक को छोड़ सभी Retire हो चुके हैं.
साल-2007 में BJP सरकार के आने के बाद उस वक्त के CM BC खंडूड़ी ने Siidcul जांच आयोग का गठन किया था.इस आयोग की रिपोर्ट पहले तो धूल फांकती रही.फिर छन के जो सामने आया उसके मुताबिक ये घोटाला ही दफ़न कर दिया गया.और भी कई IAS अफसर बाद में अन्य राज्यों से Deputation पर आए.ये नहीं कह सकते हैं कि सभी दागी थे लेकिन उनको ले के कुछ न कुछ आरोप अंदरखाने खूब उछलते रहे.ये कहा गया कि उन्होंने खूब संपत्तियां बनाईं.हो सकता है कि आरोपों में दम रहा हो लेकिन वे बच के वापिस अपने कैडर राज्य लौट गए.प्रमुख सचिव स्तर तक वे यहाँ रहे.बात सिर्फ IAS अफसरों तक सीमित नहीं रही.उत्तराखंड सरकार में Deputation और उससे बड़ी बात ये कि IAS की Cadre Post भी ले लेना गैर IAS और बाहरी राज्यों के अफसरों के लिए बाएँ हाथ का खेल साबित होता रहा.
जिसकी चली उसने अपनी चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.इनमें Indian Foreign Service से ले के Non All India Service वाले भी खूब रहे.IDAS-ITS-Central Police Force-IRS शामिल रहे.इन सभी ने IAS की Post में बैठ के इफरात में उस कुर्सी की ताकत का पूरा मजा लिया.नाम लेना ठीक नहीं रहेगा लेकिन हकीकत ये है कि इन अफसरों का ट्रैक रिकॉर्ड पहले भी खराब रहा और अब भी उनकी काबिलियत को ले के दनादन सवाल उठ रहे हैं.एकाध अपवाद रहे लेकिन IAS अफसरों वाले गुण या क्षमता का अधिकांश में सर्वथा अभाव साफ़ दिखा.एक Deputationist अफसर सचिव रहने के दौरान अपने HoD के दफ्तर पर ही छापा मार आए और उनके दफ्तर में ताला ठोंक दिया था.
ये कहा जा सकता है कि IAS अफसरों वाले गुण Central Civil Service वाले अफसरों में कभी नहीं दिखे.उनकी कार्यशैली सरकारों के लिए कल भी सिरदर्द रही और आज भी.एक महकमे को संभालने और सरकार में रह के काम करने के Exposre से कभी नाता न रखने वालों को सरकार के System में अहम और IAS के ओहदों पर बिठा देना सरकार की सोच और योजनाओं को दूर धकेल देना साबित हुआ.जब तक वे System को समझने तक पहुँचते हैं, तब तक उनका कार्यकाल ख़त्म हो जाता है.सरकार में काम करने का उनका Zero अनुभव सरकार को ही चोट पहुँचाने का काम करता रहा है.देश भर में IAS अफसरों के लिए कहा जाता है कि ऊपर ईश्वर-नीचे IAS ही परमेश्वर हैं.इसके बावजूद यहाँ के IAS अफसर उनकी Association कभी भी ऐसे Non IAS अफसरों को अपने Cadre Post पर बैठने से नहीं रोक पाई.
उत्तराखंड के IAS अफसरों को सिर्फ एक ही मोर्चे पर सफलता मिली है.अपने ही Cadre के IPS अफसरों को IAS की Cadre पोस्ट पर उन्होंने कभी बैठने नहीं दिया. हैरत की बात ये है कि IPS अफसरों का ट्रैक Record शासन या महकमों में HoD की कुर्सी पर बैठने के दौरान Extra Ordinary न भी रहा हो तो वे अन्य राज्य कैडर के IAS अफसरों से कम भी नहीं रहे.Non IAS Cadre वालों से तो वे कई दर्जा बेहतर साबित हुए हैं.इसके बावजूद IPS अफसरों को कभी भी शासन में सचिव नहीं बनाया गया.उनको या तो अपर सचिव बनाया गया या फिर Ex Cadre Posts (विशेष प्रमुख सचिव या विशेष सचिव).IAS की कैडर पोस्ट से इनका कोई ताल्लुक नहीं है.ये बात दीगर है कि IPS अफसरों को Ex Cadre Posts पर भी उत्तराखंड के IAS देखना पसंद नहीं करते हैं.
ये सवाल पूछा जा सकता है या फिर उठाया जा सकता है कि उत्तराखंड Cadre के होने और Non All India Civil Service वालों को सचिव बनाने के बावजूद IPS अफसरों से इतनी तल्खी सरकार को क्यों रहती है? सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर BJP की.ITS-IDAS और IFS (विदेश सेवा) पूर्व में उनके बैच के हिसाब से शासन में सचिव बन चुके हैं.जब बात उत्तराखंड Cadre के ही IPS अफसरों की आई तो उनको सचिव बनने से यहीं के IAS अफसर रोकने में सफल होते रहे.आज ADGP होने और ढाई दशक की सेवा के बावजूद IPS अफसर अभिनव कुमार सचिव नहीं बन पाए.उनको विशेष प्रमुख सचिव की Ex Cadre कुर्सी दी गई है.ADGP अमित सिन्हा भी छोटी से सरकारी एजेंसी ITDA के Director ही बन पाए.DIG रिद्धिम अग्रवाल भी विशेष सचिव ही हैं.पूर्व में भी जब Non IAS Cadre वाले Deputationist जब सचिव की कुर्सी गर्म कर रहे थे तो दीपम सेठ-अभिनव-पुष्पक ज्योति-अजय रौतेला अपर सचिव से ऊपर नहीं जा पाए थे.बैच की वरिष्ठता के बावजूद.
शायद सरकार और IAS अफसरों में या तो उनको ले के पूर्वाग्रह और आशंका रहती है या फिर ये सोचते हैं कि वर्दी वालों के वश का सरकार चलाना नहीं.या फिर उनका कोई अधिकार नहीं.भले अन्य Cadre के बाबु किस्म के अफसर आ जाएं.उत्तराखंड में IPS अफसरों से लाख गुणा बेहतर Position में Indian Forest Service के अफसर रहे हैं.वे प्रमुख सचिव तक बने.अपर सचिव बनना तो उनके लिए चुटकी बजाने का खेल साबित होता रहा है.आज भी जो Deputationist हैं, वे या तो सरकार की योजनाओं और सोच को दलदल में धकेल रहे या फिर बेहद निष्प्रभावी साबित हो रहे.उनको ले के ये माना जाता है कि कभी Power न देखी होने के कारण पहली बार Power में आने से वे तुगलकी किस्म के फैसले ले लेते हैं.पुष्कर सिंह धामी को बहुत सुलझा हुआ और अंदाज लगाने वाला CM माना जाता है.उनकी छवि और प्रतिष्ठा विवादों और इनसे नाता रखने वालों को परे झटकने वाले की है.Deputationist Non IAS अफसरों से होने वाले संभावित नुक्सान और झटकों को वह शायद जल्दी समझ जाएं.ऐसा तब हो रहा जब उत्तराखंड Cadre के अफसर HoD बनने की राह ताके हुए हैं.