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मुद्दा::Cantt Board के असैनिक इलाकाओं का नगर निगम में विलय!केंद्र गंभीर:राज्य सरकार भी राजी! 

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डाकरा-गढ़ी-प्रेमनगर-क्लेमेंटाउन निगम को फौजी प्रशासन से मुक्ति!

छावनी में बदल जाएगी सियासत:बड़े और दुष्कर हो जाएंगे चुनाव

मौजूदा हालात देख वाशिंदों को कई मामलों में राहत मुमकिन

Chetan Gurung

देहरादून के Cantt Boards के भी सभी असैनिक इलाकों का नगर निगम या फिर नगर पालिका में विलय करने के लिए केंद्र सरकार गंभीर है। बहुत अधिक संभावना इस फैसले के लागू होने की है। खास तौर पर ये देखते हुए कि उत्तराखंड सरकार भी सेना के आधिपत्य में बरतनिया हुकूमत के दौर से चले आ रहे असैनिक छोटी-बड़ी Townships को लेने में ऐतराज नहीं कर रही। वह केंद्र सरकार की विलय से जुड़ी सैद्धान्तिक सोच के साथ नजर आ रही। ये फैसला जिस दिन भी अमल में लाया जाएगा, छावनी की सियासत और सूरत एकदम बदली नजर आएगी।

डाकरा कैंट की आधी सड़क पाइप लाइन बिछाने के लिए खोदी गई थी। अब बिना ठीक किए उधड़ी पड़ी है। बदसूरती-हादसों को दावत दे रही। कोई देखने वाला नहीं

कैंट बोर्ड्स के गैर सैनिक हिस्सों को नगर निगम और पालिका में शामिल करने के मद्देनजर केंद्र सरकार से रक्षा मंत्रालय की Additional Secretary निवेदिता शुक्ला और DDG (रक्षा संपदा) देहरादून आ के लोगों से रायशुमारी भी कर गए थे। निवेदिता ने `ChetanGurungg.Com’ से कहा कि अभी ये रायशुमारी के स्तर पर है लेकिन केंद्र सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है। इस बाबत अंतिम फैसला होना है’।

केंद्र की सोच ये है कि कैंट क्षेत्र के भीतर आने वाले असैनिक हिस्सों को नगर पालिका के हवाले कर दिया जाए तो यहाँ के वाशिंदों को फायदा होगा। राज्य सरकार की योजनाओं और सुविधाओं का लाभ लेने के अधिक मौके उनको मिलेंगे। छावनी क्षेत्रों में रहने वालों को पिछले कई सालों से तमाम किस्म की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। सड़कों-पुलों, अस्पतालों-डिस्पेंसरियों-पानी की टंकियों के निर्माण से जुड़ी समस्याएँ उनके सामने लगातार आती रही हैं।

साफ-सफाई के Baisc मुद्दे तक हल नहीं होते हैं। आम लोग तो फिर भी अपने हक के लिए आवाज उठा लेते हैं, लेकिन कैंट बोर्ड की सियासत करने वाले नेताओं की जुबान अफसरों तो दूर बाबुओं के सामने भी नहीं खुलती हैं। अगर रेकॉर्ड देखा जाए तो पानी-नाली-सड़कों से जुड़ी जन समस्याओं को ले के एक भी छोटा सा आंदोलन तो दूर ज्ञापन तक देने की हिम्मत बोर्ड के उपाध्यक्ष या सदस्य पिछले ढाई दशक से ज्यादा से नहीं जुटा पाए हैं। उनको अफसरों-बाबुओं के सामने हमेशा फरियादी के अंदाज में देखा जाता रहा है।

इसके चलते डाकरा-गढ़ी के लोगों को अमूमन राज्य सरकार की नेमतों और MLA के एक किस्म से रहमो करम पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अस्पताल-सड़कें-पानी की टंकियों का निर्माण MLA फंड से या फिर राज्य सरकार की मदद से हो रहा। कैंट बोर्ड छोटे-छोटे पार्क और उनके सौंदर्यीकरण तक नहीं करा पा रहा। हाल के सालों में सारे काम डाकरा-गढ़ी में PWD-MDDA-MLA फंड से हुए हैं। कैंट बोर्ड का काम सिर्फ टैक्स वसूलना रह गया है। उसके पास अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए भी फंड की दिक्कत रहती है।

साल 2010 में कैंट बोर्ड से सिर्फ 50 मीटर दूर गढ़ी जाने-आने की दिशा में पुल धंस गया था। पूरा ट्रैफिक तब डाकरा की छोटी सी गलीनुमा सड़क पर चला गया था। महीने से ऊपर गुजरने के बावजूद उसके निर्माण के बाबत कैंट बोर्ड का जवाब पैसे नहीं है, था। तब उस वक्त के Chief Secretary सुभाष कुमार ने PWD सचिव और VC MDDA को आपदा कोष से इस पुल का निर्माण करने के आदेश दिए थे। तब जा के लोगों को राहत मिली थी। डाकरा-गढ़ी के एक भी Ward Member ने पुल के निर्माण के लिए कुछ नहीं किया था।

उत्तराखंड सरकार के Additional Chief Secretary (शहरी विकास-आवास-राजस्व) आनंदबर्द्धन ने `ChetanGurungg.Com’ से कहा कि केंद्र सरकार की सोच कैंट बोर्ड के असैनिक क्षेत्र में रहने वालों को दिक्कतों और अनेक समस्याओं से बचाने और तमाम सुविधाओं-केंद्र तथा राज्य सरकार की योजनाओं से आच्छादित करने की है। इस मामले में राज्य सरकार की राय केंद्र से इत्तफाक रखती है।

केंद्र और राज्य सरकार की राय आपस में मिलती-जुलती होने के कारण ये तय सा लग रहा कि असैनिक छावनी क्षेत्र नगर निगम या पालिका का हिस्सा हो जाएंगे। साल से अधिक अरसा कैंट बोर्ड के चुनाव स्थगित हुए हो चुके हैं। ऐसा संभव है कि केंद्र सरकार (रक्षा मंत्रालय) अपनी नई सोच के मद्देनजर चुनाव को जान बूझ के टाले हुए है। नगर निगम में कैंट के असैनिक इलाकों के मिलने की सूरत में एक बड़ा फर्क टैक्स प्रणाली में आ सकता है। साथ ही पानी के कनेक्शन और भवनों के नक्शे पास करने की जो सुविधा अभी कैंट बोर्ड में है, वह नहीं रहेगी।

पानी के कनेक्शन तब जल संस्थान और भवनों के नक्शे पास करने का जिम्मा MDDA में चला जाएगा। भवन टैक्स नगर निगम में जमा होंगे। टैक्स में काफी इजाफा होना तय है। पुराने कारोबारी अपने पुराने भवनों का टैक्स सिर्फ इतना दे रहे कि उनसे कई गुना अधिक टैक्स नगर निगम क्षेत्र के झोपड़ी-झुग्गी वाले दे रहे। टैक्स में समानता होने के चलते टैक्स बढ़ जाएंगे। सबसे बड़ा धक्का कैंट बोर्ड की राजनीति में रमे नेताओं को लगेगा। ये संभव है कि यहाँ के वार्डों का परिसीमन दुबारा होगा। इसमें वक्त लगेगा। वार्ड बड़े होंगे और उनकी संख्या भी कम हो जाएगी। चुनाव लड़ने भी कठिन होंगे।

स्थानीय नेताओं के सामने बड़ी दिक्कत सियासी चुनौती के तौर पर उनके सामने आएगी। नगर निगम की सियासत के उस्ताद-घाघ किस्म के पेशेवर नेता अपना रुख डाकरा-गढ़ी-प्रेमनगर की ओर कर सकते हैं। जहां उनको कमजोर चुनौती मिलेगी। चुनाव बेहद ख़र्चीले और महंगे हो सकते हैं। नगर निगम का चुनाव लड़ने के लिए अर्हताएँ कठिन नहीं है। निगम क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। उसका नाम सिर्फ मतदाता सूची में होना चाहिए। किसी अन्य किस्म के सर्टिफिकेट की जरूरत चुनाव लड़ने के लिए नहीं होगी। 

आम लोगों को ये सुविधा होगी कि वे अपनी बातें और जन समस्याएँ निगम तक आसानी से पहुंचा पाएंगे। अभी सेना के अफसर और IDES अफसरों (CEO) के सामने अपनी बातें और समस्याओं को रखने में भी उनके सामने दिक्कत आती है। Ward Members हो या फिर VP, वे कागजी किस्म भर के हैं। उनकी दशा का हाल ये है कि गढ़ी कैंट बोर्ड में किसी जमाने में Ward Members और VP के लिए अलग से कमरा हुआ करता था। वहाँ सभी बैठा करते थे। आज उनका ये कमरा भी छिन चुका है।

इसके खिलाफ भी वे आवाज नहीं उठा पाते हैं। अब जब वे कैंट बोर्ड ऑफिस जाते हैं तो उनके पास बैठने की कुर्सी तक नहीं होती है। किसी बाबू ने कुर्सी दे दी तो उसकी मर्जी। उनको खड़े-खड़े ही वापिस आना पड़ता है। अपने इस हक और अपमान के लिए भी उनका बोल न पाना प्रशासन के सामने उनके दब्बूपने को जाहिर करता है । ऐसे में लोगों के लिए वे ज़ोर से बाबुओं के सामने बोल पाएंगे, इसकी उम्मीद कोई करता भी नहीं है।

निगम में असैनिक क्षेत्रों के आने पर डाकरा-गढ़ी में मुख्य मार्गों पर भीषण अतिक्रमण से मुक्ति मिल सकती है। इनको हटाने का जिगर अभी तक कैंट बोर्ड नहीं दिखा पाया है। निगम के बुलडोजर और JCB इसके खिलाफ भारी दबाव के बावजूद गरजते रहते हैं। हालात और आरोप हैं कि अतिक्रमण हटाने के लिए खुद Ward Members राजी नहीं रहते हैं। उनको अपने वोट खराब होने की फिक्र अधिक रहती है। निगम का हिस्सा होने पर ये अतिक्रमण बहुत जल्द JCB-बुलडोजर के शिकार हो सकते हैं। इससे लोगों को राहत मिल सकती है।  

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