
सीट पर मोदी-शाह की मुहर:कैलाश गहतौड़ी दे रहे विधायकी से इस्तीफा
Chetan Gurung
देहरादून। चंपावत के लोगों के पास मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपना विधायक चुनने का सुनहरा अवसर होगा। यहाँ से लड़ने के फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने हरी झंडी दे दी है। बीजेपी के ही कैलाश गहतौड़ी यहाँ से विधायक हैं। वह इस्तीफा दे रहे। विजय को ले के कोई गफलत नहीं होने के चलते पार्टी और पुष्कर का लक्ष्य विजय अंतर अधिक से अधिक करने पर होगा।
पुष्कर के पास उपचुनाव लड़ने के लिए सीटों की कमी नहीं थी। चारों तरफ से उनके पास उनकी खातिर इस्तीफा देने की पेशकश बीजेपी के साथ ही काँग्रेस विधायकों से भी आ रही थी। बागी तेवर अपनाए हुए धारचूला के विधायक हरीश धामी लगातार अपनी पार्टी काँग्रेस के पसीने छुड़ाए हिए हैं। हरीश अपनी पार्टी से बेहद नाराज और नाखुश हैं। खुद मुख्यमंत्री की निगाहों में कई सीटें थीं, लेकिन चंपावत और देहरादून की कैंट सीट को ले के वह बहुत आश्वस्त थे।
वह इन दो जगहों में से ही किसी एक पर लड़ने के हक में थे। ये भी माना जा रहा था कि पार्टी बीजेपी के वरिष्ठ विधायक बिशन सिंह चुफाल से भी डीडीहाट की कुर्सी खाली करने के लिए कह सकती है। इस विचार को छोड़ दिया गया है। चुफाल के तेवर मंत्री न बनाए जाने को ले के बहुत सख्त और नाराजगी भरे होने के कारण उस सीट पर जोखिम लेने के लिए पुष्कर और पार्टी राजी नहीं हुई। कैंट सीट पर बीजेपी विधायक सविता कपूर हैं।
एक बार के लिए उनसे इस्तीफा दिलाने और उनको सरकारी दायित्व देने पर सहमति बन गई थी। पुष्कर के लड़ने के लिए ये एकदम मुफीद सीट थी। विरोधी दलों के पास यहाँ मजबूत प्रत्याशी ही नहीं होना और सरकारी आवास से चंद मिनटों के फासले पर कैंट सीट है। इससे पुष्कर को प्रचार अभियानों के लिए विशेष रूप से वक्त निकालना न पड़ता। वह कभी भी किसी भी वक्त कैंट विधानसभा क्षेत्र में आ-जा सकते थे। ये बीजेपी के हक में जाने वाला पहलू था। इन सभी कारणों से ही सविता को अभयदान मिल गया।
चंपावत भी खटीमा से सटी है, जो मुख्यमंत्री की मूल सीट है। ये सोच भी आई कि महिला विधायक से मुख्यमंत्री के लिए सीट खाली कराना वह भी पार्टी के मरहूम वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर की पत्नी से, उससे खराब राजनीतिक और सामाजिक संदेश शायद ही जा सकता है। इन सबको महसूस करते हुए ही चंपावत पर लड़ने को ले के अंतिम राय बन गई। मुख्यमंत्री के करीबी लोगों के मुताबिक चंपावत से लड़ने की सूरत में पुष्कर के सामने असल चुनौती फतह की नहीं है।
ये तो तय है लेकिन विजय का अंतर अधिक से अधिक (कम से कम 25 हजार) रखने पर मेहनत की जानी है। उपचुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री के लिए ये लक्ष्य बहुत कठिन नहीं होना चाहिए। ये क्षेत्र के लोगों के लिए किसी बड़े सम्मान से कम नहीं होता है, अगर मुख्यमंत्री उनके विधायक होते हैं। चंपावत के लोग 5 साल तक के लिए मुख्यमंत्री को चुनने के लिए वोट डालेंगे। न कि विधायक के लिए। ये बहुत बड़ा फर्क बीजेपी-काँग्रेस प्रत्याशी के बीच है। इतने से ही बीजेपी-पुष्कर का पलड़ा उपचुनाव में भारी हो जाना तय है।
काँग्रेस को जिताने का मतलब सामान्य विधायक को जितवाना होगा। पुष्कर कल चंपावत जा रहे हैं। इसके साथ ही उनका चुनाव अभियान भी डग-कुलांचे भरने लगेगा। इस बार सिर्फ काँग्रेस के लोगों और उनकी गतिविधियों पर ही नहीं बल्कि बीजेपी के भी हर शख्स पर खुफिया निगाहें रखी जाएंगी कि आखिर वे पार्टी और मुख्यमंत्री विरोधी गतिविधियों को अंजाम तो नहीं दे रहे। खटीमा में जो दगाबाजी उनके साथ पार्टी के ही लोगों ने की, उसकी पुनरावृत्ति अब होने नहीं दी जाएगी।