
The Corner View
Chetan Gurung
देहरादून और उत्तराखंड के तकरीबन हर कोने में दो चीजें बहुत महँगी हो चुकी हैं.1-पढ़ाई.2-जमीन या मकान-फ्लैट..संयोग की बात है कि दोनों का ही जिंदगी और साधारण ढंग से गुजर-बसर कर रहे लोगों से बहुत करीबी नाता है.पढ़ाई के बगैर भविष्य नहीं बन सकता और सिर पर छत सभी को चाहिए.आम बातचीत में हर कोई ये कहता मिलेगा कि दोनों ही बूते से बाहर की बात होती जा रही.स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई औकात से बाहर होती जा रही और जमीन-संपत्ति खरीदना ख्वाब के समान.मंझोली सरकारी नौकरी वाले बैंक कर्ज ले के जैसे-तैसे मकान बना ले रहे या जमीन का टुकड़ा खरीद पा रहे.उनके पास सुनिश्चित आय और लम्बी-पक्की नौकरी की गारंटी है तो बैंकों की कतारें उनके सामने लगी रहती है.ये बात दीगर है कि बैंक कर्ज चुकाते-चुकाते उनमें बुढ़ापा आ जाता है.जवानी में जो शौक अपने और परिवार के हो सकते हैं, उनमें भारी कटौती करना मजबूरी बन जाती है.जरूरी नहीं है कि हर सरकारी बाबु या अफसर भ्रष्ट हो या फिर हर कुर्सी पर इफरात में या फिर ठीक-ठाक नंबर-2 का पैसा आता ही हो.

सरकारी नौकरी से ज्यादा आसानी से MNCs में मोटे या फिर ठीक ठाक पैकेज पर नौकरी मिल जाती है.कम उम्र में अधिक पैसा ईमानदारी से कमाना हो तो MNCs की तनाव भरी नौकरी बेहतर विकल्प कह सकते हैं.भले सुबह तक या फिर शाम तक भी नौकरी बनी रहने का विश्वास न हो.उनके पास फ्लैट-जमीन और गाड़ियां जल्दी दिख जाएगीं.पढ़-लिख के रात-दिन मेहनत कर के भी लेकिन एक सीमित दायरे में ही वे अपने शौक कुछ हद तक पूरे कर सकते हैं.हम तो आज तक माता-पिता की ही संपत्ति पर हैं.लम्बी पत्रकारिता और पति-पत्नी की नौकरी के बावजूद कहीं कोई संपत्ति नहीं.परिवार भी सिर्फ 3 जन का.कमाई से सिर्फ जरूरतें पूरी हो पाती हैं न कि महंगे शौक.
ऐश और शौक पूरे करने के लिए दो ही धंधे रह गए हैं.स्कूल-कॉलेज-University-Coaching Institute खोलें या फिर जमीनों के धंधों की काली दुनिया में कूद पड़ें.ये ऐसे कारोबार या फिर जल्द मोटी कमाई के रास्ते बन गए हैं जहाँ पैसा बरसता है और सरकारी System में घुसपैठ आसानी से हो जाती है. दोनों हाथों से जल्द माल बटोरने के लिए इससे आसान जरिया नहीं रह गया है.नेता-मंत्री और अफसर-Media नतमस्तक रहते हैं.पत्रकारिता करते हुए मैंने तमाम ऐसी मिसालें देखी हैं और देख रहा हूं, जब फक्कड़ किस्म का या बेहद सामान्य दलाल किस्म के लोग आज करोड़ों-अरबों में खेल रहे.नेता-मंत्री-अफसर-मीडिया घरानों के बड़े नौकर उनके साथ उठ-बैठ रहे या फिर जी-हुजूरी कर रहे.उनकी हैसियत कभी फूटी दमड़ी की या फिर किसी दारोगा के साथ खड़े होने तक की नहीं हुआ करती थी.ये वे लोग हैं जो या तो जमीन के धंधों में घुस गए या फिर स्कूल-कॉलेज और विवि खोल लिए.कुछ IAS-IPS-IFS-Civil Services की नौकरी दिलाने के संस्थान खोल के बैठे हैं.
ये वे लोग हैं जिनको जालसाज या फिर टटपुन्जिये से बड़ा दर्जा नहीं मिला करता था.आज उनके पास दुनिया की महँगी कारें और मोटर बाइक-बंगलों की कतार है.प्लाट हैं.दो दशक पहले मैंने ही श्रंखलाबद्ध स्टोरी की थी कि कितने निजी इंजीनियरिंग और प्रबंधन-पैरा मेडिकल किस्म के संस्थान निहायत फर्जी हैं.युवाओं की जिंदगी-भविष्य से खेल रहे.वे कांग्रेस घास की तरह शहर भर में सस्ती जमीनों को खरीद के या फिर किराये की इमारतों में नजर आने लगे थे.उनके पास न राज्य सरकार और न ही AICTE की मान्यता ही थीं.जब पढ़ाई ख़त्म कर बच्चे निकलते थे तो उनको नौकरी मांगने पर पता चलता था कि उन्होंने फर्जी कॉलेज से पढ़ाई की.जब इसका खुलासा हुआ तो उस वक्त की ND तिवारी सरकार में तकनीकी शिक्षा सचिव नृप सिंह नपच्याल ने इन धंधेबाजों के खिलाफ न सिर्फ जांच फिर FIR करवाई थी बल्कि उनको फरार होने और सुधर जाने या फिर हमेशा के लिए दुकान पर ताला मारने के लिए मजबूर कर दिया था.
नपलच्याल तक पहुँच किसी की नहीं थी.न ही उनको दबाव या प्रलोभन में लाया जा सकता था.मुझे-तब के तकनीकी शिक्षा मंत्री हीरा सिंह बिष्ट को तब के फरार शिक्षा माफिया ने अलग-अलग लोगों के जरिये मिलने और लुभाने की तमाम नाकाम कोशिशें की थीं.ताज्जुब ये है कि वक्त गुजरने के साथ उनमें से कई बाद में सत्ता में चिरौंजी और माथा टेकने का हुनर सीखने के बाद फिर काले धंधे में उतर आए हैं.सरकार में घुसे बैठे अफसरों और बाबुओं को खरीदना आज के दौर में कहीं आसान हो जाने से वे आज स्थापित शिक्षा माफिया बन चुके हैं.जमीनों के धंधों में भी कूद पड़े हैं.इससे अधिक लज्जाजनक कुछ नहीं हो सकता कि अरबों रूपये के बदनाम छात्रवृत्ति घोटाले में जेल जा चुके या फिर जमानत ले के बैठे इन माफिया के साथ तस्वीर खिंचवा के या फिर उनके यहाँ मुख्य अतिथि बन के मंत्री-विधायक ही नहीं कई मुख्यमंत्री तक खुद को बेहद सम्मानित महसूस करते रहे हैं.
कई कॉलेज ऐसे हैं जिन्होंने नाम ही बदल लिया.पुराने काले करतूतों को छिपाने और सरकारी दस्तावेजों में उनको भुला दिया जाए, इसके लिए इससे बेहतर उपाय उनको शायद नजर नहीं आया.प्रेमनगर से नीचे और GMS रोड से नीचे ऐसे तमाम कॉलेज हैं, जिन्होंने नाम बदल के धंधा और बड़ा कर लिया है.पौंधा की तरफ कई कॉलेज ऐसे हैं, जिनके पास न तो जरूरी बुनियादी सुविधाएं हैं न ही Faculty.वे लेकिन इतने कोर्स चला रहे हैं, जितने सरकारी और Graphic Era सरीखी ढांचागत सुविधाओं-बड़े शिक्षाविदों से सज्जित बहुत बड़े Private विवि के पास भी नहीं हैं.छात्रवृत्ति घोटाले में फंसे और 15-20 हजार रुपल्ली की नौकरी में इन लोगों ने बिना Phd वाले शिक्षकों को भी रख के युवाओं को एक किस्म से बरगलाने का काला काम और काली कमाई कर रहे हैं.सरकारी तंत्र आँखें बंद किए नहीं बैठा है बल्कि उनको हवा-पानी-खाद दे रहा.
जब शिक्षा संस्थानों में मिलीभगत से जबरदस्त फर्जीवाड़ा चल रहा हो तो सरकार को अधिक चौकस होने और नए-पुराने सभी शिक्षा की दुकानों और धंधेबाज मालिकों का इतिहास क्यों नहीं निकाल के कार्रवाई करनी चाहिए?कई कॉलेज UTU-श्रीदेव सुमन-गढ़वाल विवि से एक ही कोर्स में सम्बद्धता लिए हुए हैं.विवि के VC और रजिस्ट्रार-Controller (Examination)-बाबुओं से उनकी सांठ-गाँठ हैं.धंधा ऐसे ही मिल-जुल के चल रहा उनका.देहरादून के साथ ही रुड़की-हरिद्वार-उधम सिंह नगर-नैनीताल की तरफ भी ऐसे शिक्षा माफिया तंत्र के दुकानों की भरमार हैं.छात्रवृत्ति घोटाले में फंसे कॉलेज की List उठा के देख लेंगे तो सब खेल समझ में आ जाएगा.उनको सरकारी तंत्र से पोषण बढ़िया मिलने का नतीजा है कि वे अपनी सल्तनत बढ़ाते जा रहे.
सरकार में कोई पार्टी रही, उनकी घुसपैठ होती चली गई.जिनको चिंदीचोर-जालसाज कहा जाता था, और कॉलेज बनने की योग्यता-सुविधाएँ नहीं रखते हैं, वे शासन में बैठ बाबुओं-मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के दरबारियों की मेहरबानी से University बन गए.इन सभी की एक जांच ईमानदारी से कर ली जाए तो उनको स्कूल का दर्जा भी बामुश्किल मिल सकेगा.स्कूल की बात आई है तो कई स्कूल मालिकों को जानता हूँ.वे कभी छोटे-मोटे धंधे या फिर जमीन के कुछ बिस्वा वाले सस्ते प्लाट बेचा करते थे.फिर धन्धा बड़ा होता चला गया.खास तौर पर उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद.रजिस्ट्री-तहसील महकमे और अफसरों-बाबुओं-नेताओं में घुसपैठ कर पहले वे बड़े भू-माफिया बने फिर इज्जत कमाने के लिए स्कूलों की दुनिया में घुस गए.हैरान न होइए कि उनके स्कूल बुनियादी सुविधाओं के मामले में राजधानी के तमाम बड़े और पुराने-स्थापित-प्रतिष्ठित स्कूलों से कहीं आगे हैं.इसके बावजूद एक फर्क साफ दिखता है.
उत्तराखंड बनने से पहले के नामी स्कूलों के मालिक और प्रबंधन आज भी सरकारी तंत्र को बेवजह भाव नहीं देता या फिर उनको पहचानते तक नहीं.जमीनों के धंधे के रास्ते स्कूलों की दुनिया में घुसे लोगों को हमेशा ही सरकारी तंत्र के लोगों की आवभगत और सेवा के लिए आतुर-तत्पर देखा जा सकता है.SJA-Summervalley-Brightlands-CJM दिन के स्कूल हैं लेकिन उनके मालिकों तक तो दूर उनके प्रबंधन से जुड़े मंझोले शख्स से भी संपर्क करना प्रशासन तक के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है.Boarding सुविधा वाले Col Brown-Welham (Girls-Boys) की तो बात ही छोड़ दें.The Doon School तो उनके ख्वाब में भी नहीं आता.जमीनों के धंधे में पैसा सुनामी की तरह राज्य बनते ही बरसना शुरू हुआ.आज आलम ये है कि शहर से अधिक गाँवों और कुदरत के करीब वाले दूरस्थ हिस्सों में मुंबई-दिल्ली-गुड़गाँव के रईसों-नौकरशाहों और बड़े राजनेताओं-मंत्रियों के बड़े-बड़े फार्म हाउस हैं.
देहरादून में किमाड़ी रूट-पौंधा-भारतवाला-बिष्ट गाँव-पुरकुल-शिमला बाईपास-विकासनगर-हरिद्वार में बुग्गावाला-चिड़ियापुर फार्म हाउस या फिर बंगला बनाने के लिए बेहतरीन Location बन के उभरे चुके हैं.जमीनों के धंधे में Local माफिया से ले के बड़े-बड़े रसूखदार नामों तक उतरे हुए हैं.वे देहरादून की हरियाली और शान्ति-सुकून को कभी का ख़त्म कर चुके हैं.अफसरों-नेताओं से उनकी गलबहियां-दांतकाटी रोटी का नाता उनको पोषित करता है.तमाम बाधाएं भले खड़ी कर लें, उनका अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा आगे बढ़ता ही जा रहा.IAS-IPS-PCS अफसरों के साथ उनके करीबी रिश्ते हस्तिनापुर में मजबूत जड़ें जमाने वालों की नजरों से नहीं छिपे हैं.IMA के करीब अमिताभ टेक्सटाइल मिल की सैकड़ों करोड़ रूपये की जमीन की plotting का खेल CM पुष्कर सिंह धामी की सख्ती के चलते लटक गया था.इसके बावजूद माफिया अपनी साजिश में कामयाब हो गए.अब वहां धड़ल्ले से plotting हो रही.
आर्केडिया चाय बागान की 1200 एकड़ के करीब की 20 हजार करोड़ के मूल्य की जमीन को खुर्द-बुर्द करने का खेल हो रहा था.ATM-ATE जमीन के खेल का खुलासा मैंने ही किया था.आर्केडिया चाय बगान की जमीन कानून का उल्लंघन होने के नाते अब तक सरकार के कब्जे में होनी चाहिए थी.क्यों नहीं हो रही,इस पर ताज्जुब है.अफसरों की मिलीभगत है या फिर ऊपर का कोई दबाव!एक भू-माफिया ने खुद मुझे बताया कि उत्तराखंड में बाहरी लोगों के साथ जमीनों की खरीद-फरोख्त पर सरकार की रोक सिर्फ मजाक और माफिया तंत्र के लिए आँख बंद कर बाएँ हाथ का खेल करने से अधिक कुछ नहीं है.बाहरी लोग 250 गज से ज्यादा जमीन खरीद नहीं सकते.वे ऑनलाइन ही अपने नाम वाले उत्तराखंड डोमिसाइल वाले लोगों की जमीनों के फर्द का प्रिंट आउट निकाल के उसको नत्थी कर धड़ल्ले से जमीन खरीद और बेच रहे.अब तक डेढ़ दशक में वे ऐसा सैकड़ों डील में कर चुके हैं.
सरकार और प्रशासन को इतने बड़े खेल और जालसाजी-जुर्म की भनक तक नहीं लगी.जिस शख्स के नाम का दस्तावेज ऑनलाइन ख़ामोशी से बड़े आराम से निकाल लिया जाता है, इसको कोई नुक्सान होता नहीं और न ही उसको इसकी जानकारी मिलने का कोई प्रावधान है.ऐसे में ये धंधा मजे में चल रहा.जमीनों के खेल से सम्बंधित समिति के प्रमुख पूर्व IAS अफसर सुरेन्द्र सिंह रावत और एक DM ने मुझसे इस बाबत मेरी स्टोरी पढ़ के कॉल किया और माना कि ये वाकई बहुत बड़ा और आसानी से ख़ामोशी संग चल सकने वाली जालसाजी है.उनको भी इसका कोई अंदाज नहीं था.कोई शिकायत किसी की आई भी नहीं.फर्द की जांच का कोई प्रावधान भी नहीं.ऐसे में भू-कानून लाने के साथ ही ऐसी जालसाजी को रोकने के लिए भी ठोस कदम उठाने और पूर्व में हुए जमीनों के बड़े सौदों की जांच भी कराने की दरकार है.
देहरादून में जमीनों का धंधा इतना बड़ा और तेजी से फल-फूल रहा कि शराब और खनन के माफिया के साथ ही बड़े-बड़े राजनेता-मंत्री-नौकरशाह और उद्योगपति भी इसमें घुसने को मजबूर हो गए हैं.उनको भी इसमें अधिक उम्मीदें माल आसानी से कूटने की दिख रही.देहरादून के जोहड़ी गाँव में 20 बीघा जमीन को ले के बहुत बड़े उद्यमी और जमीनों के धंधे से वास्ता रखने वाले बड़े नाम और कॉलेज चला रहे उनके करीबी मित्र में इन दिनों जबरदस्त युद्ध छिड़ा हुआ है.जिस सुधीर विंडलास की सरकार-संघ और BJP में पकड़ मानी जाती थी,उसको इस जमीन की जमीनी लड़ाई में तब फरार होना पड़ा जब उसके खिलाफ FIR दर्ज हो गई.इस लड़ाई में दोनों ही पक्ष मजबूत हैं.मुख्यमंत्री पुष्कर को कड़े और बड़े कदम उठाने तथा सुशासन के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए जाना जा रहा है.शिक्षा और जमीन माफिया की वे कितनी जल्दी और कितने प्रभावी ढंग से मुश्कें कसते हैं, इस पर भी नजरें रहनी स्वाभाविक है.